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Showing posts from May, 2019

गलतियों से मत डरो

क्या आप ऐसे किसी व्यक्ति को जानते हो जिसने कभी गलती ना की हो ? नहीं जानते होंगे , क्योंकि गलतियाँ करना मनुष्य का स्वभाव है , और मैं कहूँगा कि जन्मसिद्ध अधिकार भी . आप अपने इस अधिकार का प्रयोग करिए . गलती करना गलत नहीं है ,उसे दोहराना गलत है . जब तक आप एक ही गलती बार -बार नहीं दोहराते तब तक दरअसल आप गलती करते ही नहीं आप तो एक प्रयास करते हैं और इससे होने वाले experience से कुछ ना कुछ सीखते हैं . दोस्तों कई बार हमारे अन्दर वो सब कुछ होता है जो हमें किसी काम को करने के लिए होना चाहिए , पर फिर भी failure के डर से हम confidently उस काम को नहीं कर पाते . आप गलतियों के डर से डरिये मत , डरना तो उन्हें चाहिए जिनमे इस भय के कारण प्रयास करने की भी हिम्मत ना हो !! आप जितने भी सफल लोगों का इतिहास उठा कर देख लीजिये उनकी सफलता की चका-चौंध में बहुत सारी असफलताएं भी छुपी होंगी . Michel Jordan, जो दुनिया के अब तक के सर्वश्रेष्ठ basketball player माने जाते हैं;

नफरत या मुहब्बत

देश में नफरतों का इतिहास बहुत पुराना बताया जाता है, मगर कोई मुहब्बतों के इतिहास की बात क्यों नहीं करता? नफरत के इतिहास को दोहराकर नफरतें मिलेंगी और मुहब्बतों के इतिहास को दोहराने से मुहब्बतें। हमें क्या चाहिए? नफरत या मुहब्बत? इसमें कोई शक नहीं है कि नफरत करने वाले, मुहब्बत करने वालों की तुलना में ज्यादा संगठित होते हैं, क्योंकि नफरत करना मानव विरोधी काम है, इसलिए उन्हें अधिक संगठित होने की जरूरत होती है। यही सोशल मीडिया में दिखाई देता है। मुहब्बत करने वाले खामोश रहते हैं और नफरत करने वालों के समूह चिल्लाते रहते हैं। हर नफरत करने वाला 10 छद्म नामों से अपनी पोस्ट डालता रहता है। लोगों को यह दिखाने के लिए कि वे बहुमत में हैं, जबकि सच्चाई इसके उलट है। नफरत करने वाले कम हैं, मोहब्बत करने वाले अधिक हैं। दुनिया में मोहब्बत करने वाले और नफरत करने वाले हमेशा रहे हैं और रहेंगे। अहम सवाल यह है कि हम मोहब्बत करने वालों से प्रेरणा लेते हैं या नफरत करने वालों से? अगर हम नफरत करने वालों से प्रेरणा लेते हैं, तो हम नफरत फैलाएंगे और हम अगर मोहब्बत करने वालों से प्रेरणा लेते हैं, तो मोहब्बत फैलाएंगे। दे

प्यार दिल से या दिमाग से होता है

नोएडा के एक व्यस्त मॉल में हाथ में हाथ डालकर घूमते एक जोड़े के सामने जब यह सवाल रखा गया तो उनमें से एक ने दिमाग पर ज्यादा जोर दिए बिना एक बहुत सुना-सुनाया जवाब हमें दे दिया. जवाब कुछ यूं था - प्यार न दिल से होता है न दिमाग से, प्यार तो इत्तेफाक से होता है. उनका साथ दे रहीं मोहतरमा ने इस जवाब को थोड़ा और सुधारते हुए कहा – सच्चा प्यार तो इत्तेफाक के साथ-साथ किस्मत से ही होता है. इसके बाद हमने उनके जवाब को सहारा बनाते हुए अपनी पड़ताल आगे बढ़ाई कि आखिर प्यार दिल से होता है या दिमाग से? असल में जब अच्छी किस्मत के चलते आपके साथ कोई खूबसूरत इत्तेफाक होता है तो कोई आपको सिर्फ एक ही पल में पसंद आ सकता है. इसे ही पहली नजर का प्यार कहते हैं. ऐसा हम नहीं बल्कि वैज्ञानिक शोध भी कह रहे हैं. किसी को देखते ही दिमाग में एक साथ कई केमिकल रिएक्शन होते हैं जिससे कोई व्यक्ति प्यार में पड़ जाता है. इसे कुछ इस तरह से कहा जा सकता है कि पहली नजर पड़ते ही आपका दिल किसी पर नहीं आता बल्कि आपके दिमाग में कोई आ जाता है. यानी कहने को कुछ भी कहें पर प्यार की शुरुआत दिल से नहीं दिमाग से होती है.