नफरत या मुहब्बत
देश में नफरतों का इतिहास बहुत पुराना बताया जाता है, मगर कोई मुहब्बतों के इतिहास की बात क्यों नहीं करता? नफरत के इतिहास को दोहराकर नफरतें मिलेंगी और मुहब्बतों के इतिहास को दोहराने से मुहब्बतें। हमें क्या चाहिए? नफरत या मुहब्बत? इसमें कोई शक नहीं है कि नफरत करने वाले, मुहब्बत करने वालों की तुलना में ज्यादा संगठित होते हैं, क्योंकि नफरत करना मानव विरोधी काम है, इसलिए उन्हें अधिक संगठित होने की जरूरत होती है। यही सोशल मीडिया में दिखाई देता है। मुहब्बत करने वाले खामोश रहते हैं और नफरत करने वालों के समूह चिल्लाते रहते हैं। हर नफरत करने वाला 10 छद्म नामों से अपनी पोस्ट डालता रहता है। लोगों को यह दिखाने के लिए कि वे बहुमत में हैं, जबकि सच्चाई इसके उलट है। नफरत करने वाले कम हैं, मोहब्बत करने वाले अधिक हैं। दुनिया में मोहब्बत करने वाले और नफरत करने वाले हमेशा रहे हैं और रहेंगे। अहम सवाल यह है कि हम मोहब्बत करने वालों से प्रेरणा लेते हैं या नफरत करने वालों से? अगर हम नफरत करने वालों से प्रेरणा लेते हैं, तो हम नफरत फैलाएंगे और हम अगर मोहब्बत करने वालों से प्रेरणा लेते हैं, तो मोहब्बत फैलाएंगे। देश, दुनिया और समाज को आगे बढ़ाने और खुशहाल रखने के लिए क्या जरूरी है- मोहब्बत या नफरत?
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