KABIR SINGH

21जून को रिलीज हुई फिल्म #KabirSingh की तारीफ भी हो रही है और आलोचना भी...तारीफ होनी ही चाहिए क्योंकि इस फिल्म में Shahid Kapoor ने गजब की एक्टिंग की है...उनकी ऐनर्जी, उनका गुस्सा और वो सारी चीज़ें जो इस किरदार के लिए ज़रूरी थीं, उन सब चीज़ों पर शाहिद ने निश्चित तौर पर मेहनत की और वो स्क्रीन पर दिखती भी हैं...इसी तरह की एक्टिंग रितिक रोशन भी करते नजर आते हैं...Kiara Advani खूबसूरत लगी हैं और क्लाईमेक्स में एक्टिंग भी दिखा जाती हैं...वैसे ये समीक्षा लिखने की वजह फिल्म का अच्छा या बुरा होना नहीं है...वो तो आप फिल्म देखकर खुद ही तय कर लेंगे...ये लिखने की वजह है, कि आखिर कबीर सिंह चाहिए किसे...कौन चाहेगा कि उसका कबीर सिंह जैसा बेटा हो, जिसे गुस्सा काबू करना नहीं आता हो। कौन चाहेगा कि उसका कबीर सिंह जैसा भाई हो...जो अपने बड़े भाई पर हाथ उठा देता हो...कौन वो लड़की होगी जो चाहेगी कि उसका कबीर सिंह जैसा बॉयफ्रैंड या पति हो जो लड़की जिसे वो प्यार करता है उसे अपनी प्रॉपर्टी समझता हो...और खुद से अलग उस लड़की का वजूद ही नहीं मानता हो...इंटरवल से पहले कबीर सिंह का क्यारा को थप्पड़ मारकर ये कहना कि तुम जो भी हो मेरी वजह से हो, कहना अखरता है...हो सकता कुछ लड़कियों को इस तरह के प्रेमी पसंद आते हों...जो लड़की को मारकर अपने प्यार का सबूत देते हों...वैसे प्यार तो कोई भी कर लेता है लेकिन इज़्ज़त देने वाले कम ही मिलते हैं।
एक सलाह उन नए 'कबीरों' को जो फिल्म देखकर कबीर सिंह जैसा बनने की सोच रहे होंगे...कि कबीर सिंह सिर्फ पर्दे पर देखने के लिए ही है, बस रील लाइफ में ही अच्छा लगता है, रीयल लाइफ में कबीर सिंह ना होता है और ना होना चाहिए...फिल्म के अंत में कबीर सिंह भी सुधर जाता है तो अगर आखिर में सुधरना ही है तो क्यों कबीर सिंह बनकर अपनी जिंदगी का कुछ खूबसूरत हिस्सा खराब करना। अब अंत में इस फिल्म से जुड़ी सबसे खूबसूरत चीज... और वो हैं दादी जो बेहद लाउड फिल्म में ठंडी हवा के झोंके की तरह आती हैं...और उनकी एक बात जो फिल्म देखकर निकलने के बाद से अब तक याद है..

''आप किसी को खुश करने की कोशिश में उसका दुःख नहीं बाँट सकते...हर किसी को अपने कष्ट खुद ही सहने पड़ते हैं''

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